किसे नहीं पता ?
पृथ्वी में कार्बनडाई आक्साइड की मात्रा
निज कृत्य से
नित्य बढ़ रही है ,
तापमान बढ़ रहा है
जलवायु में परिवर्तन हो रहा है ।
कहीं अकाल , कहीं बाढ़
कहीं तूफान , कहीं सुनामी
जीना कठिन हो रहा है ।
फिर भी अपने को ज्ञानी कहलाने वाला मनुष्य
अभी भी नहीं चेत रहा
परिवेश को किसी न किसी बहाने
अपने कर्मों से विनाश की ओर झोंक रहा है ।
वनों को काटना
पहाड़ों को तोड़ना ,
बड़े - बड़े बांध बनाना
ऊचे - ऊचे भवन बनाना
शहरों से गन्दी नालियों एवं कारखानों से
निकला गंदा पानी को नदियों में छोड़ना ,
निर्मल जल को प्रदूषित करना।
चिमनियों से निकलता धुआं
खेती में कीटनाशकों का बढ़ता प्रयोग,
वातानुकूलन हेतु एसी का बढ़ता प्रयोग ,
वाहनों से निकला हुआ धुआँ ,
खुले में कचड़ों को जलाना ,
दिन-प्रतिदिन बढ़ता प्रदूषण ,
जीवों के लिए खतरा बनता जा रहा है ,
साँसों की बीमारी बढ़ा रहीं हैं,
मनुष्यों की सेहत बिगाड़ रही है ,
जीवों का जीवन संकट में है ,
जीव विलुप्त हो रहे हैं।
मनुष्य इनसे विज्ञ है ,
किन्तु प्रज्ञा अपराध करता जा रहा है।
अपने अहं की तृप्ति के लिए युध्द करना ,
युध्द में अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग ,
विनाशकारी बमों से हमला करना ,
यह सबकुछ पर्यावरण के दुश्मन ही तो हैं।
ख़ुशी के दिन हों या तीज - त्यौहार,
नववर्ष हो ,जीत की खुशी हो ,
खुशियाँ बांटने की जगह
बारूद का धुआं बाँटना ,
यह कब तक चलेगा ,
इसका अंत निकट है।
ऐ प्रज्ञावान मनुष्य चेतो ,
अपने कृत्य से सुन्दर धरा को
नरक मत बनाओ ,
मौत का कुआँ मत बनाओ ,
अभी भी वक्त है ,सम्हल जाओ ,
पेड़ लगाओ,
सुगन्धित औषधियुक्त दृव्यों का हवन करो,
बंद करो आपस में लड़ना,
बमों का प्रयोग,
बारूद से परहेज करो ,
पृकृति से प्यार करो ,
धरती को हरियाली से सजाओ ,
धरती के अस्तित्व के साथ ही तुम्हारा अस्तित्व है ,
जागो , नहीं मिट जाओगे।